Wednesday, December 29, 2010
एक कहावत
Saturday, December 11, 2010
दोषी कौन?
आज इसके एकदम विपरीत है । आज शिक्षक कीजो छवि उभर कर आती है उसमे शिक्षक आक्रामक और उद्दंड है। छात्रों द्वारा शिक्षकों के साथ दुर्वयवहार की घटनाएँ , शिक्षको द्वारा की जाने वाली हड़ताल और प्रशासकों से किये जाने वाले व्यवहार शिक्षकों के किन नैतिक मूल्यों का बखान करते हैं? शिक्षको के सम्मान में निरंतर गिरावट आ रही है , इसका दोषी कौन ? ये एक प्रश्न है जो मैं आप के सामने रख रहा हूँ। आप के जवाब के इंतज़ार में............
Saturday, July 31, 2010
मैं ऐसा क्यों हूँ
क्यों खुश हो जाता हूँ मैं
तुम्हारी ख़ुशी देख कर
क्यों हो जाता हूँ मैं हताश
तुम्हें उदास देखकर
चहक सा उठता हूँ मैं क्यों
जब मिलने की बारी आती है
पर क्यों मिलने के बाद घंटो
नींद नहीं आती है
आँखें बंद करने से क्यों
याद तुम्हारी आती है
पर जब खुलती हैं तब
फिर क्यों तू सामने आती है
आंसू तेरे टपकते हैं तब
क्यों मैं सिसकता हूँ
ज़रा सी तू हंसती है तब
क्यों मैं निखरता हूँ
जब भी देखता हूँ तुम्हे
बस यही सोचता हूँ
पूछूं तुमसे या दिल में रखूं ये बात
सुन ज़रा बस इतना बता
मैं ऐसा क्यों हूँ!
मैं ऐसा क्यों हूँ!.........
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Saturday, July 17, 2010
पहचान
नहीं, यह भी नहीं
यह भी नहीं यह भी नहीं,
वह तो न जाने कौन थे
ये सब के सब तो मेरे जैसे हैं
सभी की धड़कनों में नन्हे नन्हे चांद रोशन हैं
सभी मेरी तरह वक़्त की भट्टी के ईंधन हैं
जिन्होंने मेरी कुटिया में अंधेरी रात में घुस कर
मेरी आंखों के आगे
मेरे बच्चों को जलाया था
वह तो कोई और थे
वह चेहरे तो कहाँ अब ज़ेहन में महफूज़ जज साहब
मगर हाँ पास हो तो सूँघ कर पहचान सकती हूँ
वो उस जंगल से आये थे
जहाँ की औरतो की गोद में
Friday, July 16, 2010
दुनिया
निदा फाजली
जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया
बच्चों के स्कूल में शायद तुमसे मिली नहीं है दुनिया
चार घरों के एक मोहल्ले के बाहर भी है आबादी
जैसी तुम्हे दिखाई दी है , सब की वही नहीं है दुनिया
घर में ही मत उसे सजाओ, इधर-उधर भी ले के जाओ
यूँ लगता है जैसे तुमसे अब तक खुली नहीं है दुनिया
भाग रही है गेंद के पीछे, जाग रही है चाँद के नीचे
शोर भरे नारों से अब तक घबरायी नहीं है दुनिया !!!
Wednesday, July 14, 2010
ग्रुप स्टडी के फायदे
Wednesday, July 7, 2010
गलती किसी की भुगते कोई
बीते दो महीने से पूरे उत्तर प्रदेश के माध्यमिक शिक्षकों का वेतन नहीं मिला है। पता यह चला है माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने एक केस में शिक्षा निदेशक या प्रिंसिपल सेक्रेटरी के खिलाफ अवमानना का नोटिस इश्यु कर दिया। जिसमे पूरे उत्तर प्रदेश के सभी कालेजो में सिर्जित पदों का ब्यौरा माँगा गया था। साहब लोग ब्यौरा उपलब्ध कराने में तो नाकाम रहे। उलटे ये आदेश पारित कर दिया कि जब तक सभी जिलों के जिला विद्यालय निरीक्षक द्वारा , माँगा गया ब्यौरा उपलब्ध नहीं करा दिया जाता तब तक किसी भी शिक्षक और कर्मचारी का वेतन नहीं दिया जायेगा।
चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर प्रिंसिपल और प्रिंसिपल से लेकर जिला विद्यालय निरीक्षक तक सभी इस ब्योरे को उपलब्ध कराने में लग गए। एक महीना निकल गया। जून के महीने में शिक्षक और कर्मचारी बच्चों को कहीं घुमाने ले जाने के बजाये दो जून की रोटी को तरस गए। अब दो महीने निकल गए और वेतन का कोई पुरसानेहाल नहीं है। विद्यालय खुलते ही पुराने बूढ़े हो चुके शेरो ने गर्जना की। पूरे ताम-झाम के साथ बरेली में संयुक्त शिक्षा निदेशक के दफ्तर पर हल्ला बोला गया। जिसमे शिक्षक विधायक ने भी हिस्सा लिया। कीचड- पानी में जिले भर ही नहीं बल्कि पूरे मंडल के शिक्षक- शिक्षिकाएं उपस्थित हुए, लेकिन उस धरने में अफ़सोस इस बात का रहा कि मीडिया ने कोई बहुत बेहतर रुख नहीं अपनाया। सुबह जब उठकर समाचार पत्र देखा तो बहुत मामूली सी खबर.........जैसे दो महीने का वेतन नहीं मिला तो कोई बात ही नहीं। गलतियां अधिकारी की भुगते कर्मचारी।
अरे भाई! जुलाई में बच्चों के दाखिले कराना हैं, कॉपी- किताबें दिलाना हैं, ड्रेस दिलानी है, फीस जमा करनी है। लेकिन इन सबसे किसी को कोई मतलब ही नहीं। सेवानिवृत्त हो चुके शिक्षकों के पेंशन का काम अभी तक अधूरा पड़ा है। जब तक बाबुओं की जेब गरम नहीं होगी वोह कोई काम क्यूँ करने लगे।
सभी के मुंह से सुन लो " अरे यार! ज़माना बहुत खराब है।" ख़राब खुद कर रखा है दोष दूसरों पर। 'रंग दे बसंती' फिल्म आई थी, देखकर ऐसा लगा शायद इसके बाद कोई क्रांति आएगी, फिर बाद में लगा भाई कोई क्रांति-व्रांति नहीं आने वाली। जो हो रहा है होने दो, लोग पिसते हैं तो पिसने दो, रिश्वत ली जा रही है लेने दो, देने वाले को देने दो। कोई रिश्वत लेते हुए पकड़ा जाता है और रिश्वत देकर ही छूट जाता है। कहते हो तो कहते रहो, लिखते हो तो लिखते रहो, किसी पर कोई असर नहीं होने वाला। आखिर कब तक ऐसे जीते रहेंगे या ऐसे जीना ही नियति है।
Tuesday, July 6, 2010
आ भी जा
ये किस ने कहा है मेरी तकदीर बना दे
दीवार है दुनिया इसे राहों से हटा दे
Sunday, July 4, 2010
रसीदी टिकट
ये कुछ पंक्तियाँ अमृता प्रीतम के मशहूर उपन्यास रसीदी टिकट से ली गयी हैं। मेरी पसंद के कुछ उपन्यासों में से एक है और इसे पढ़कर आप भी पूरा उपन्यास पढने की कोशिश करेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है................
परछाइयां बहुत बड़ी हक़ीकत होती हैं। चेहरे भी हक़ीकत होते हैं। पर कितनी देर ? परछाइयां, जितनी देर तक आप चाहें.....चाहें तो सारी उम्र। बरस आते हैं, गुज़र जाते हैं, रुकते नहीं, पर कई परछाइयां, जहां कभी रुकती हैं, वहीं रुकी रहती हैं.......
जब घर में तो नहीं, पर रसोई में नानी का राज होता था। सबसे पहला विद्रोह मैंने उसके राज में किया था। देखा करती थी कि रसोई की एक परछत्ती पर तीन गिलास, अन्य बरतनों से हटाए हुए, सदा एक कोने में पड़े रहते थे। ये गिलास सिर्फ़ तब परछत्ती से उतारे जाते थे जब पिताजी के मुसलमान दोस्त आते थे और उन्हें चाय या लस्सी पिलानी होती थी और उसके बाद मांज-धोकर फिर वहीं रख दिए जाते थे। सो, उन तीन गिलासों के साथ मैं भी एक चौथे गिलास की तरह रिल-मिल गई और हम चारों नानी से लड़ पड़े। वे गिलास भी बाकी बरतनों को नहीं छू सकते थे, मैंने भी ज़िद पकड़ ली और किसी बरतन में न पानी पीऊंगी, न दूध। नानी उन गिलासों को खाली रख सकती थी, लेकिन मुझे भूखा या प्यासा नहीं रख सकती थी, सो बात पिताजी तक पहुंच गई। पिताजी को इससे पहले पता नहीं था कि कुछ गिलास इस तरह अलग रखे जाते हैं। उन्हें मालूम हुआ, तो मेरा विद्रोह सफल हो गया। फिर न कोई बरतन हिन्दू रहा, न मुसलमान। उस पल न नानी जानती थी, न मैं कि बड़े होकर ज़िन्दगी के कई बरस जिससे मैं इश्क़ करूंगी वह उसी मज़हब का होगा, जिस मज़हब के लोगों के लिए घर के बरतन भी अलग रख दिए जाते थे। होनी का मुंह अभी देखा नहीं था, पर सोचती हूं, उस पल कौन जाने उसकी ही परछाई थी, जो बचपन में देखी थी.........
दिलीप कुमार
Spouse
Asmaa
(1982 - ?) (divorced)
Saira Banu
(1966 - present)
Trade Mark
His deep, rich voice
Trivia
Formed a popular screen couple with Madhubala
Son-in-law of Naseem Banu.
Brother of actor Nasir Khan.
Bollywood first superstar to hail from Pakistan.
He is known as the "tragedy king".
He was the most successful actor of the 40s and 50s and had great success as the legend of Bollywood Amitabh Bachchan in the 70s and 80s.
Is uncle (by marriage to wife Saira Bano) of actress Shaheen, who is married to actor Sumeet Saigal, they have a 6 year old daughter named Sayesha.
During escalating tensions between India and Pakistan, he had agreed to accept an award from Pakistan, and was threatened by workers of an extreme right-wing political party in Bombay, India. He actually wrote to the Prime Minister, Atal Bihari Vajpayee, for protection. The threat has now subsided with improved relations between India and Pakistan.
Has been a member of parliament.
Saturday, July 3, 2010
तेरी याद
खिलौना
Thursday, July 1, 2010
मुअम्मा
किताब-ए-ज़िन्दगी
किसी दिन
जो मिल जाये कभी फुर्सत तो पास आ जाओ किसी दिन।
मिलता है सभी कुछ सभी को ये सुना है
मुझको तो फ़क़त तुम ही मिल जाओ किसी दिन।
बरसों से यह दिल मेरा खाली ही पड़ा है
तुम अपने नाम की तख्ती ही लगा जाओ किसी दिन।
बरसों की मुहब्बत को किस तरह भुलाते हैं
मुझे भी हुनर ऐसा सिखा जाओ किसी दिन।
मुक़द्दर में जो लिखा है न मिट पायेगा
फुर्सत मिले तो दिल को ये समझा जाओ किसी दिन।
Tuesday, June 29, 2010
नज़्म उलझी हुई है
अभी यहाँ से न जाओ
It is one of my favourite nazm by famous poet FIRAQ GORAKHPURI .I am posting it to my friend. Hope it will be liked.
Bada karam hai ye mujhpar, abhi yahan se na jaao
Bahut udaas hai ye ghar, abhi yahan se na jaao;
Tum aa gaye to shab-e-gham ke puchh gaye aansu
Yahan na tha koi din-bhar, abhi yahan se na jaao;
Abhi to aaye ho dekha nahi hai jebhar ke
Ye aarzoo hai ki uthkar, abhi yahan se na jaao;
Hue ho mujhse juda jab zara tavakkuf se
Sambhal gaya hun main aksar, abhi yahan se na jao;
[tavakkuf = late]
Hamari aankon se chun lo ki phir kisi damon
Na mil sakenge ye gauhar, abhi yahan se na jaao;
[damon = price] [gauhar = pearl]
Wo aarzuein jo vabasta tumse hain unko
Chale ho chorke kis par, abhi yahan se na jaao;
[vabasta = related]
Vafure-gham se jinhe neend aa gayi thi kabhi
Wo yaadein jaag uthi sokar, abhi yahan se na jaao;
[vafure-gham = excess of sadness]
Ruke raho nigahe-neem-ba se kuch main bhi
Bana lun apna muqaddar, abhi yahan se na jaao;
[nigahe-neem-ba = half-closed eyes] [muqaddar = luck]
Tumhare paas ye andaza ho raha hai mujhe
Ki mera haal hai behtar, abhi yahan se na jaao;
Abhi to soye chiragon ne aankh kholi hai
Abhi to jaagte hain ghar, abhi yahan se na jaao;
Ruko-ruko ki padi hai abhi to raat tamaam
Bahut udaas hai manzar, abhi yahan se na jaao;
[manzar = scene]
Ye dil chiraag jale se tumhe, jahan bhi raho
Pukarta hai barabar, abhi yahan se na jaao;
Hamari raat chali jaayegi tumhare saath
Hamari raat ko lekar, abhi yahan se na jaao;
Bahut ruke meri khatir ye sochta hun ki ab
Kahun main tum se kyonkar, abhi yahan se na jaao।
Ye dil chiraag jale se tumhe, jahan bhi raho
Pukarta hai barabar, abhi yahan se na jaao;
Hamari raat chali jaayegi tumhare saath,
Hamari raat ko lekar, abhi yahan se na jaao।
SHADOWS
Every sin appears to the fore
Such nights have also passed
ग़ज़ल
परवीन शाकिर की एक ख़ूबसूरत ग़ज़ल आप सब के लिए..........
Monday, June 28, 2010
सोच
दूर तलक सुनसान सड़क पर
तन्हा निकलती है सोच कोई
रोती भी नहीं , हंसती भी नहीं
टीन के ख़ाली डिब्बे को
ठोकर मारकर दूर ढकेलती
नुक्कड़ के एक ख़ाली कोने में
एक याद से जाकर मिलती है
शब्-ओ-रोज़ मिला करते थे यहीं
आज है वो कहाँ और हम कहाँ
सोच ने देखा वापस आकर
अरे! हम तो हैं यहीं, मगर तन्हा.....
चाँद
याद
Thursday, June 24, 2010
वो कमरा याद आता है
मैं जब भी
ज़िन्दगी की चिलचिलाती धूप में तपकर
मैं जब भी
दूसरों के और अपने झूठ से थक कर
मैं सब से लड़ के खुद से हार के
जब भी उस एक कमरे में जाता था
वो हलके और गहरे कत्थई रंगों का एक कमरा
वो बेहद मेहरबान कमरा
जो अपनी नर्म मुट्ठी में मुझे ऐसे छुपा लेता था
जैसे कोई माँ
बच्चे को छुपा ले आँचल में
प्यार से कहे
ये क्या आदत है
जलती दोपहर में मारे मारे घूमते हो तुम
वो कमरा याद आता है
दबीज़ और खासा भारी
कुछ ज़रा मुश्किल से खुलने वाला
वो शीशम का दरवाज़ा
के जैसे कोई अक्खड़ बाप
अपने खुरदुरे सीने में
शफ़क़त के समुन्दर को छुपाये हो
वो कुर्सी
और साथ साथ वो जुड़वां बहन उसकी
वो दोनों
दोस्त थी मेरी
वो एक गुस्ताख मुंह फट आइना
जो दिल का अच्छा था
वो बेहंगम सी अलमारी
जो कोने में
एक बूढी अन्ना की तरह
आईने को तम्बीह करती थी
वो एक गुलदान
नन्हा-सा
बहुत शैतान
उन दोनों पे हँसता था
दरीचा
या ज़हानत से भरी एक मुस्कराहट
और दरीचे पे झुकी वो बेल
कोई सब्ज़ सरगोशी
किताबे
ताक में और शेल्फ पर
संजीदा उस्तानी बनी बैठी
मगर सब मुन्तजिर इस बात की
मैं उनसे कुछ पूछूँ
सिरहाने
नींद का साथी
थकन का चारागर
वो नर्म दिल तकिया
मैं जिसकी गोद में सर रखके
छत को देखता था
छत की कड़ियों में
न जाने कितने अफ्सानो की कड़ियाँ थी
वो छोटी मेज़ पर और सामने दीवार पर
आवेज़ा तस्वीरें
मुझे अपनाइयत से और यकीन से देखती थीं
मुस्कुराती थीं
उन्हें शक भी नहीं था
एक दिन
मैं उनको ऐसे छोड़ जाऊंगा
मैं एक दिन यूँ भी जाऊंगा
के फिर वापस न आऊंगा
मैं अब जिस घर में रहता हूँ
बहुत ही खूबसूरत है
मगर अक्सर यहाँ खामोश बैठा याद करता हूँ
वो कमरा बात करता था।
तन्हा
Wednesday, June 23, 2010
तुम नहीं समझोगे
आंधी
दुश्वारी
फसाद के बाद
मेरा आँगन, मेरा पेड़
Monday, June 21, 2010
STREET HAWKER
Sunday, June 20, 2010
Polythene Waste Disposal
Polythene bags can best be defined as a non-biodegradable substance that is used by the majority of Indians as packing materials. Despite the fact that they are cheap as well as light, they are hazardous in the following ways;
- The fact that they are non biodegradable makes them hard to dispose and as a result, they can act as breeding places for many of the disease germs which, sooner than later cause an epidemic in the surrounding people.
- The fact that they are very light also makes it very easy for them to be blown from place to place and as a result, the unending littering of the environment.
- These polythene bags have over time been proven to be environmentally unfriendly considering the time taken for their decomposition. As a result of this time spun they can cause further problems like blocking water penetration into the soil which in turn affects food growth and development.
As an alternative of having to suffer the unending plight of environmental down fall, we would suggest that an alternative means of packaging materials should be encouraged and as such the use of polythene bags should be banned.
Polythenes are therefore the most outstanding of all the waste in the homes of most Indians and are hard to dispose off. They affect the environment in a number of ways with some very adverse effects.
Due to the careless disposal of the polythene in the country, the areas where they have been deposited in large quantities have lost soil fertility.This is mainly because they cannot rot and decompose and therefore cannot lead to the formation of good soils. The polythene bags have also got an acidic combination which with time disturbs the chemical formulas of the soils.
The poor disposal of the polythene bags can also lead to the spread of diseases. This is because the polythene bags can easily block the the sewerage and water pies which can eventually lead to the spread of the Diseases. They cannot also cause water logging since the water cannot percolate through them and this can be a good breeding ground for some of the vectors which spread diseases.
Unneccessary littering of the polythene bags on the roadsides destroys the beautiful scenary. If they are carelessly thrown all over the place, they make the environment very untidy and unpleasant to look at. This is the case in some parts of the city.
The polythene bags cannot allow the water to pass so easily. As a result the soil is not well earatedand this is because they are non-biodegradable and water cannot easily percolate through them.
Death of domestic animals specially the cows and the goats after eating the polythene bags. This clearly show that waste if mismanaged can be very dangerous to the environment.
Emphasis should be put on the use of paper bags. This is because the paperbags are also light and they can easily decompose. They should therefore act as the subsitute for the polythene bags . The industries should also be encouraged to recycle the polythene bags.
Education of the masses on the proper disposal of the polythene waste. The masses should be sensitized about the dangers of the improper disposal of the polythene bags.
Burningof the plythene bags using the incenerators at very high temperatures. This should mainly be done for the case of the polythene bags which were deposited so many years ago and have not decomposed up to now.
Laws and legislations should be put in place regarding the improper poythene waste disposal. The people who are seen throwing away the polythene bags careless while moving should be penalised and this should be done by lobbying the parliament to pass these laws. In some cases the use of polythene bags should be banned especially where they have been mismanaged.
Local Action projects should be emphasised by the students whereby the students move to the neighbouring communities to have them cleaned up and also carry out the seminars to sensitise the masses about the dangers of improper waste disposal.
Friday, June 18, 2010
Afforestation
Experts have introduced new ideas like high-yielding forestry. Our forests can survive if forestry look to this goal of national development . New forests should be planted .Where there is space in old forests , new trees can be planted.Forest college should open their doors to students from all fields of life .
Afforestation must be one of our main aims. It is the duty of the government and the people to preserve the forest wealth.Our government has started the festival of VAN- MAHOTSAVA or the FOREST FESTIVAL. Its really very nice.
Tuesday, June 8, 2010
मधुशाला
मृदु भावों के अंगूरों की
आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से
आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा
फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत
करती मेरी मधुशाला।।१।
प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर
पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर
नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे
ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं
तुझ पर जग की मधुशाला।।२।
प्रियतम, तू मेरी हाला है,
मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू
बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता,
मस्त मुझे पी तू होता,
एक दुसरे को हम दोनों
आज परस्पर मधुशाला।।३।