Tuesday, June 8, 2010


मधुशाला की मादकता अक्षय है।
मधुशाला
मृदु भावों के अंगूरों की
आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से
आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा
फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत
करती मेरी मधुशाला।।१।

प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर
पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर
नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे
ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं
तुझ पर जग की मधुशाला।।२।

प्रियतम, तू मेरी हाला है,
मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू
बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता,
मस्त मुझे पी तू होता,
एक दुसरे को हम दोनों
आज परस्पर मधुशाला।।३।