Wednesday, June 23, 2010

फसाद के बाद

अभी हाल ही में २ मार्च से शहर भर में जो दंगे हुए उसने बरेली का अमन चैन लूट लिया था। तकरीबन २० दिनों तक बेचैनी और बद अमनी का माहौल रहा। इस माहौल ने बरेली की तहज़ीब पर काला धब्बा लगा दिया। उसी के पेशे नज़र एक नज़्म आप लोगो के सामने रख रहा हूँ। उम्मीद है आप को पसंद आएगी......

गहरा सन्नाटा है

कुछ मकानों से खामोश उठता हुआ

गाढ़ा काला धुआं

मैल दिल में लिए

हर तरफ दूर तक फैलता जाता है

गहरा सन्नाटा है

लाश की तरह बेजान है रास्ता

एक टूटा हुआ ठेला

उल्टा पड़ा

अपने पहिये हवा में उठाये हुए

आसमानों को हैरत से ताकता है

जैसे की जो भी हुआ

उसका अब तक यकीन इसको आया नहीं

गहरा सन्नाटा है

एक उजड़ी दूकान

चीख के बाद मुंह

जो खुला का खुला रह गया

अपने टूटे किवाड़ों से वो

दूर तक फैले

चूड़ी के टुकड़ों को

हसरतजादा नज़रों से देखती है

के कल तक यही शीशे

इस पोपले के मुंह में

सौ रंग के दांत थे

गहरा सन्नाटा है

गहरे सन्नाटे ने अपने मंज़र से यूँ बात की

सुन ले उजड़ी दूकान

ऐ सुलगते मकान

टूटे ठेले

तुम्ही बस नहीं हो अकेले

यहाँ और भी हैं

जो गारत हुए हैं

हम इनका भी मातम करेंगे

मगर पहले उनको तो रो ले

के जो लूटने आये थे

और खुद लुट गए

क्या लुटा

इसकी उनको खबर ही नहीं

कम नज़र हैं

के सदियों की तहज़ीब पर

उन बेचारों की कोई नज़र ही नहीं.