शाम हो रही है
सूरज
अपनी सारी लालिमा बिखेरता हुआ
रात के आगोश में
छुपने जा रहा है
धूल उड़ाती
गायों का झुण्ड लौट रहा है
आकाश में परिंदे
कतार बनाये हुए
वापस आ रहे हैं
पेड़ की उन शाखों पर
जिन पर उनका आशियाना है
ये परिंदे आयेंगे
और अपने अपने घोंसलों में सो जायेंगे
शहर की भीड़ में
अकेला खड़ा हूँ
सोच रहा हूँ
शाम हो रही है ,
मैं कहाँ जाऊंगा?