Saturday, July 3, 2010

तेरी याद


मैं तेरी याद को सीने से लगाये गुज़रा...........

अजनबी शहर की मशगूल गुज़रगाहों से

बेवफाई की तरह फैली हुई राहों से

नई तहज़ीब के आबाद बियाबानों से

दस्ते मजदूर पे हँसते हुए एवानो से

मैं तेरी याद को सीने से लगाये गुज़रा............


गाँव की दोपहरी धुप के सन्नाटों से

खुश्क नहरों के किनारों पे थकी छाओं से

अपने दिल की तरह रोई हुई पगडण्डी से

जश्ने तन्हाई में खोई हुई पगडण्डी से

मैं तेरी याद को सीने से लगाये गुज़रा............


बस्तियां छोड़ के तरसे हुए वीरानों में

तल्खिये दहर समेटे हुए मय खानों में

खून-ऐ -इंसान पे पलते हुए इंसानों में

जाने पहचाने हुए लोगों में, अनजानों में

मैं तेरी याद को सीने से लगाये गुज़रा............


यह समझ कर के कोई आँख इधर उठेगी

मेरी मगमूम निगाहों को, मुझे समझेगी

लेकिन ऐ दोस्त! ये दुनिया है यहाँ तेरा गम

एक इंसान को तस्कीन भी दे सकता है

एक इंसान से आराम भी ले सकता है


खून में डूबी हुई तहरीर भी बन सकता है

एक फनकार की तकदीर भी बन सकता है

पूरी दुनिया के मगर काम नहीं आ सकता

सब के होंठों पे तेरा नाम नहीं आ सकता।