Thursday, July 1, 2010

किताब-ए-ज़िन्दगी



बहुत मुद्दत के बाद कल जब

किताब-ए-ज़िन्दगी को मैंने खोला,

बहुत से चेहरे नज़र में उतरे

बहुत से नामों पे दिल मचला,


एक सफा ऐसा भी आया

लिखा हुआ था जो आंसुओं से

कि जिसका नाम दोस्त था

जो सफा सब से प्यारा और अज़ीज़ था

कुछ और आंसू इस पे टपके


किताब-ए-ज़िन्दगी को बंद कर के

तुम्हारी यादों में खो गया मैं

अगर तू मिलती तो क्या होता

इन्हीं यादों में सो गया मैं।


------:> काशिफ दुर्रानी