निदा फाजली
जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया
बच्चों के स्कूल में शायद तुमसे मिली नहीं है दुनिया
चार घरों के एक मोहल्ले के बाहर भी है आबादी
जैसी तुम्हे दिखाई दी है , सब की वही नहीं है दुनिया
घर में ही मत उसे सजाओ, इधर-उधर भी ले के जाओ
यूँ लगता है जैसे तुमसे अब तक खुली नहीं है दुनिया
भाग रही है गेंद के पीछे, जाग रही है चाँद के नीचे
शोर भरे नारों से अब तक घबरायी नहीं है दुनिया !!!