Saturday, July 17, 2010

पहचान

निदा फाजली




नहीं, यह भी नहीं


यह भी नहीं यह भी नहीं,


वह तो न जाने कौन थे


ये सब के सब तो मेरे जैसे हैं


सभी की धड़कनों में नन्हे नन्हे चांद रोशन हैं


सभी मेरी तरह वक़्त की भट्टी के ईंधन हैं


जिन्होंने मेरी कुटिया में अंधेरी रात में घुस कर


मेरी आंखों के आगे


मेरे बच्चों को जलाया था


वह तो कोई और थे


वह चेहरे तो कहाँ अब ज़ेहन में महफूज़ जज साहब


मगर हाँ पास हो तो सूँघ कर पहचान सकती हूँ


वो उस जंगल से आये थे


जहाँ की औरतो की गोद में

बच्चे नहीं हँसते