Wednesday, July 7, 2010

गलती किसी की भुगते कोई


बीते दो महीने से पूरे उत्तर प्रदेश के माध्यमिक शिक्षकों का वेतन नहीं मिला है। पता यह चला है माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने एक केस में शिक्षा निदेशक या प्रिंसिपल सेक्रेटरी के खिलाफ अवमानना का नोटिस इश्यु कर दिया। जिसमे पूरे उत्तर प्रदेश के सभी कालेजो में सिर्जित पदों का ब्यौरा माँगा गया था। साहब लोग ब्यौरा उपलब्ध कराने में तो नाकाम रहे। उलटे ये आदेश पारित कर दिया कि जब तक सभी जिलों के जिला विद्यालय निरीक्षक द्वारा , माँगा गया ब्यौरा उपलब्ध नहीं करा दिया जाता तब तक किसी भी शिक्षक और कर्मचारी का वेतन नहीं दिया जायेगा।


चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर प्रिंसिपल और प्रिंसिपल से लेकर जिला विद्यालय निरीक्षक तक सभी इस ब्योरे को उपलब्ध कराने में लग गए। एक महीना निकल गया। जून के महीने में शिक्षक और कर्मचारी बच्चों को कहीं घुमाने ले जाने के बजाये दो जून की रोटी को तरस गए। अब दो महीने निकल गए और वेतन का कोई पुरसानेहाल नहीं है। विद्यालय खुलते ही पुराने बूढ़े हो चुके शेरो ने गर्जना की। पूरे ताम-झाम के साथ बरेली में संयुक्त शिक्षा निदेशक के दफ्तर पर हल्ला बोला गया। जिसमे शिक्षक विधायक ने भी हिस्सा लिया। कीचड- पानी में जिले भर ही नहीं बल्कि पूरे मंडल के शिक्षक- शिक्षिकाएं उपस्थित हुए, लेकिन उस धरने में अफ़सोस इस बात का रहा कि मीडिया ने कोई बहुत बेहतर रुख नहीं अपनाया। सुबह जब उठकर समाचार पत्र देखा तो बहुत मामूली सी खबर.........जैसे दो महीने का वेतन नहीं मिला तो कोई बात ही नहीं। गलतियां अधिकारी की भुगते कर्मचारी।


अरे भाई! जुलाई में बच्चों के दाखिले कराना हैं, कॉपी- किताबें दिलाना हैं, ड्रेस दिलानी है, फीस जमा करनी है। लेकिन इन सबसे किसी को कोई मतलब ही नहीं। सेवानिवृत्त हो चुके शिक्षकों के पेंशन का काम अभी तक अधूरा पड़ा है। जब तक बाबुओं की जेब गरम नहीं होगी वोह कोई काम क्यूँ करने लगे।


सभी के मुंह से सुन लो " अरे यार! ज़माना बहुत खराब है।" ख़राब खुद कर रखा है दोष दूसरों पर। 'रंग दे बसंती' फिल्म आई थी, देखकर ऐसा लगा शायद इसके बाद कोई क्रांति आएगी, फिर बाद में लगा भाई कोई क्रांति-व्रांति नहीं आने वाली। जो हो रहा है होने दो, लोग पिसते हैं तो पिसने दो, रिश्वत ली जा रही है लेने दो, देने वाले को देने दो। कोई रिश्वत लेते हुए पकड़ा जाता है और रिश्वत देकर ही छूट जाता है। कहते हो तो कहते रहो, लिखते हो तो लिखते रहो, किसी पर कोई असर नहीं होने वाला। आखिर कब तक ऐसे जीते रहेंगे या ऐसे जीना ही नियति है।