हम दोनों जो हर्फ़ थे
हम एक रोज़ मिले
एक लफ्ज़ बना
और हमने एक माने पाए
फिर जाने क्या हम पर गुजरी
और अब यूँ है
तुम एक हर्फ़ हो
एक खाने में
मैं एक हर्फ़ हूँ
एक खाने में
बीच में
कितने लम्हों के खाने खाली हैं
फिर से कोई लफ्ज़ बने
और हम दोनों एक माने पायें
ऐसा हो सकता है
लेकिन
सोचना होगा
इन खाली खानों में हमको भरना क्या है।
-----:> जावेद अख्तर