Wednesday, December 29, 2010

एक कहावत


एक ज़मींदार साहब एक वेश्या पर आशिक हो गए। अपनी सारी ज़मीन जायदाद उस पर लुटा दी। अपने बीबी और बच्चों का ख्याल बिलकुल नहीं रखा। जब सब कुछ लुट गया तो कमाने के लिए परदेस चले गए। वहां उन्हें एक पहुंचे हुए मियां मिल गए। एक महीने तक मेहनत करके जब कुछ रुपया कमा लिया तो मियां को रूपये दिए। मियां समझे कि रुपया बीबी बच्चों के लिए भेज रहे हैं। लेकिन नहीं , साहब को उनकी कहाँ सुध? रुपया देकर मियां से बोले कि ये रुपया उस वेश्या को पहुंचा दें । मियां रुपया लेकर वेश्या के पास पहुंचे, वहां जाकर देखा कि वह अपनी रंगीनियों में मशगूल थी। वापस लौट आये । अगले दिन फिर गए और वापस लौट आये। तीसरे दिन फिर पहुंचे। वेश्या ने देखा कि ये आदमी दो दिन से आकर वापस लौट जा रहा है, कुछ कहता भी नहीं , कोई बात ज़रूर है। उसने मियां से वजह पूछी। मियां बोले कि मेरे दो सवालों का जवाब दे। पहले ये बता कि ऐसे कितने लोग हैं जिनसे तू मुहब्बत करती है? उसने कहा "तीन"। नाम गिनाये तो मीरसाहब का नाम नहीं। मियां बोले अब दूसरे सवाल का जवाब दे कि ऐसे कितने लोग हैं जिन्हें तू समझती है कि वह तुझसे प्यार करते हैं ?जवाब आया "तेरह"। नाम गिनाये तो उनमे भी मीर साहब का नाम नहीं। मियां वापस आये और रूपये साहब के बीबी बच्चों को देकर शहर लौट गए। साहब से जाकर बोले-" हजरत, न तीन में न तेरह में, और उसके लिए मरे जा रहे हो। अगर बुढ़ापा सही गुजारना है तो अपने बीबी बच्चों के होकर रहो."