हमारे शिक्षक जब यह समझने लगेंगे किहम गुरू के आसन पर बैठे हैं और हमें अपने जीवन के द्वारा अपने छात्रों में प्राण फूकनेहैं , अपने ज्ञान द्वारा बालकों का उद्धार करना है उस समय वे सत्य के रूप में स्वाभिमान के अधिकारी बन सकेंगे। तब वे ऐसी वस्तुप्रदान करने के लिए तत्पर हो सकेंगे जो मूल्य देकर नहीं मिलती। तभी वे छात्रों के लिए पूज्य बन सकेंगे।
आज इसके एकदम विपरीत है । आज शिक्षक कीजो छवि उभर कर आती है उसमे शिक्षक आक्रामक और उद्दंड है। छात्रों द्वारा शिक्षकों के साथ दुर्वयवहार की घटनाएँ , शिक्षको द्वारा की जाने वाली हड़ताल और प्रशासकों से किये जाने वाले व्यवहार शिक्षकों के किन नैतिक मूल्यों का बखान करते हैं? शिक्षको के सम्मान में निरंतर गिरावट आ रही है , इसका दोषी कौन ? ये एक प्रश्न है जो मैं आप के सामने रख रहा हूँ। आप के जवाब के इंतज़ार में............