Wednesday, March 30, 2011

कुछ पढ़ा था

बीते दिनों ट्रेन से कही जाते वक़्त रेलवे स्टेशन से एक पत्रिका खरीदी। उसमे 'नवांकुर' के नाम से पांच लघु कथाएं थी। जिनमे से २ बहुत अच्छी लगी। वह आपके सामने रख रहा हूँ.........

१-- "बनवारी की बिटिया को जॉब मिल गया है । गाँव में ये समाचार सबके मुंह पर है। '२५-३० हज़ार प्रति माह कमाती है' -गाँव की औरतें कहा करती थी। एक अच्छे होटल में उसकी ड्यूटी भी कम टाइम की थी और वेतन भी अच्छा था । ऐसा वेतन कि उसने अपने देहाती माँ-बाप को शहरी बना दिया था। कुछ दिन बाद होटल की लड़कियों को पुलिस रेड में गिरफ्तार किया गया। उनमे बनवारी की बिटिया भी थी। खबर पाकर बनवारी भी थाने पहुंचा और पूछा -"मेरी बिटिया को क्यों गिरफ्तार किया गया?''
थानेदार ने कुछ आपत्तिजनक तस्वीरें बनवारी के सामने पटकते हुए कहा -''तुम्हारी बिटिया की इस करतूत की वजह से।'' वह चुप रह गया। अब गाँव में सब कहते हैं-''तो ये था इतना ऊंचा जॉब.''


२-- गंगाराम कि फसलें सूखती जा रही थी । उसके साथ सभी किसानों ने ईश्वर से प्रार्थना की -''हे प्रभु! हमारी फसलें सूखती जा रही हैं , बरसात करा दे तो बात बन जाये।'' ईश्वर ने उनकी नहीं सुनी। बरसात नहीं हुई । सभी ने पैसे खर्च करके सिंचाई करवाई । फसलें तैयार हुईं और काट कर खलिहानों में पहुंचाई गयीं। सबका अनाज खलिहानों में ही पड़ा था। अब क्या था बरसात हुई-घनघोर और मूसलाधार।