Monday, June 28, 2010

चाँद




काफी सर्दी थी उस रात


बहुत लम्बी थी वह रात


था साया न सरगोशी कोई


थी आहट न जुम्बिश कोई


मगर देर तलक उस रात


एक ईमारत की आखिरी मंजिल पर


मखमल की चादर ओढ़े


एक चाँद खिड़की पे और


कोहरे की चादर ओढ़े


एक चाँद फलक पर




एक दूजे को टकटकी बंधे देखते रहे.